रक्षा बजट से उम्मीदें और आधुनिकीकरण की चुनौतियां

ये वर्ष भारतीय सेना के लिए मुश्किल भरा रहा। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत ने देश को झकझोर कर रख दिया। पिछले कुछ वर्षों से पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर लगातार तनाव बना हुआ हैं। चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण हिंद महासागर पहले कहीं अधिक संवेदनशील हो गया है।

पिछले बजट में रक्षा के लिए 4.78 लाख करोड़ रुपया का आवंटन किया गया। जो कुल बजट का 15.49 प्रतिशत था। रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा करीब 1.33 लाख करोड़ रुपया पेंशन के मद में खर्च किया गया। पुराने साजो सामान के रखरखाव में भी बड़ा रकम खर्च होता हैं। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के लिए 1.13 लाख करोड़ रुपया बचता हैं। वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए यह राशि पर्याप्त नहीं है। हमारे वायु सेना के विमान पुराने हो चुके हैं। पिछले बजट में वायु सेना को नये साजो सामान खरीदने के लिए करीब 43 हजार करोड़ रुपया मिला था। जबकि उसे 47 हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता थी। इसी तरह नेवी की भी बहुत सारी परियोजनाएं धन के अभाव में समय पर पूरी नहीं हो पा रही हैं।

ऐसा नहीं है कि धन का अभाव ही एक मात्र समस्या है। हम अपने वर्तमान रक्षा बजट का भी बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। अगर चीन की बात करे तो पिछले पांच साल में उसने अपनी थल सेना का आकार लगभग आधा कर लिया है। नेवी और वायुसेना के आकार को लागातार बढ़ाता जा रहा है। आधुनिक युद्ध में नेवी और वायु सेना बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली हैं।

आज भारत के पास 14 लाख सक्रिय सेना हैं। ये दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। भारत को भी थल सेना की संख्या कम करना होगा। उस राशि का इस्तेमाल वायु सेना और नेवी के लिए करना बेहतर विकल्प होगा। तभी हम भविष्य में चीन के खतरे से बच पाएंगे। उम्मीद है कि आगामी रक्षा बजट भारत को दो मोर्चों पर युद्ध के लिए तैयार करने वाला साबित होगा।

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