क्या भारत-चीन करीब आ सकते हैं !

लगभग डेढ़ साल से भारत और चीन की सीमा पर तनाव कायम है। लेकिन पिछले सप्ताह चीन ने भारत की जम कर तारीफ की। दरअसल चीन में इस वर्ष विंटर ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों का आयोजन होना है। भारत ने चीन में विंटर ओलंपिक्स का समर्थन कर कई देशों को हैरान किया है। दूसरी तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने मानवाधिकार उल्लंघन के मामले को आधार बनाकर इस अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन के राजनयिक बहिष्कार करने का निर्णय लिया।
भारत के इस समर्थन को लेकर चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्य पत्र माने जाने वाले दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि “भारत के समर्थन से पता चलता है कि वो अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी नहीं है। चीन के साथ कई मसलों पर तनाव के कारण भारत हाल के वर्षों में अमेरिका के करीब हुआ है। अमेरिका की तरफ झुकाव के बावजूद भारत ने दिखाया है कि वो सभी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामले में अमेरिका के साथ नहीं रह सकता है”। ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि “भारत अमेरिका का छोटा भाई नहीं बनना चाहता जैसे जापान और ऑस्ट्रेलिया है। भारत अपने दम पर ताकतवर बनना चाहता है”।
पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन का संबंध टकराव पूर्ण रहा है पर दोनों देशों के कई मोर्चों पर साझे हित भी हैं।


शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स-
यह पहला मौका नहीं है जब भारत चीन के साथ नजर आ रहा हो। शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स के मंच पर दोनों देश एक साथ नजर आते हैं। अमेरिका से मजबूत होते संबंधों के बावजूद भारत ने चीन,रूस, शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ भी संबंधों को आगे बढ़ाना जारी रखा है। इससे साफ है कि भारत किसी एक खेमा मे शामिल नहीं होना चाहता है। भारत की आवश्यकताओं में काफी विविधता है जिसे सिर्फ पश्चिमी देशों के सहारे पूरा नहीं किया जा सकता है।

भारत-चीन व्यापार-
डोकलाम विवाद के बाद से भारत-चीन सीमा पर लगातार तनाव बना हुआ है। इन तनावों का दोनों देशों के व्यापार पर कुछ खास प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है। वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई हैं। दोनों देशों के बीच इस छमाही में 57.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (जीएसी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष की पहली छमाही के दौरान भारत के चीन से आयात में 69.6 फीसदी और निर्यात में 60.4 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। व्यापार की दृष्टि से दोनों देशों के पास एक दूसरे का विकल्प मौजूद नहीं है।
भारत के लिए यह व्यापार चिंता का विषय है।भारत को द्विपक्षीय व्यापार को संतुलित करने के लिए चीन पर दबाव डालना होगा क्योंकि वर्तमान में व्यापार पूरी तरह से चीन के पक्ष में झुका हुआ हैं।


 भारत और चीन की ऊर्जा आवश्यकता-
भारत और चीन दोनों की ऊर्जा आवश्यकता एक सी हैं,दोनों तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था हैं। ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए दोनों देश आयात पर निर्भर है।
फॉसिल फ्यूल के खपत को कम करने के लिए दोनों ही देशों पर व्यापक अंतरराष्ट्रीय दबाव है।ऐसे में ऊर्जा जरूरत और उपयोग के मामले में दोनों देश एक ही खेमे में नजर आते हैं।


 सांस्कृतिक निकटता-
भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक निकटता सदियों पुरानी है। बुद्घा डिप्लोमेसी का सहारा लेकर दोनों देश एक नई शुरुआत कर सकते हैं। भारत और चीन के साथ आने से पूर्व की संस्कृति का गौरव बढ़ेगा। पश्चिमी संस्कृति के सामने एक मजबूत विकल्प प्रस्तुत किया जा सकता है।


भारत और चीन  के साथ आने से दोनों देशों का फायदा होगा। दोनों देश अपने सालाना बजट का बड़ा हिस्सा सैन्य जरूरतों में खर्च करते है। अगर संबंध सुधरता है तो इस धन का उपयोग आम नागरिक के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। चीन को समझना होगा कि भारत के सहयोग के बिना वह महाशक्ति नहीं बन सकता है। भारत-चीन मित्रता से विश्व समुदाय में चीन की स्वीकार्यता बढ़ेगी।
यह सब कुछ अकेले भारत के चाहने से नहीं होगा। चीन को भी अपनी ओर से कदम उठाने होंगे। चीन की आक्रामक विदेश नीति ने भारत को अमेरिका के करीब जाने के लिए विवश किया है। आज के वक्त मे कोई देश अकेले नहीं रह सकता है।
चीन को सीमा विवाद पर भी नरम रुख अपनाना होगा। मैकमोहन रेखा पर चीनी दृष्टिकोण और माओ के “एक हथेली और पांच उंगली” के सिद्धांत से पीछे हटे बिना सीमा विवाद का समाधान नहीं हो सकता है।
पाकिस्तान से निकटता और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का बेवजह विरोध से चीन को बचना चाहिए। समय की मांग यही है कि भारत और चीन साथ आये, इसी में एशिया समेट पूरे विश्व का हित है। उम्मीद है कि नए वर्ष में दोनों देश नई शुरुआत करेंगे।

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